संदेश
प्रिय छात्र एवं छात्राओं
शिक्षा केवल जीविकोपार्जन का साधन मात्र नहीं है अपितु बौद्धिक विकास का साधन है। यह व्यक्तित्व का विकास करती है। इतना ही नहीं शिक्षा उपाधि प्राप्त करने के लिए भी नहीं होती अपितु मनुष्य के भीतर दायित्व बोध उत्पन्न करना ही शिक्षा की सार्थकता है। प्रत्येक समाज अपने लिए एक शिक्षा व्यवस्था का निर्माण करता है उसी व्यवस्था में सराहनीय कार्य करने वाला श्री गौरीशंकर संस्कृत स्नातकोत्तर महाविद्यालय की स्थापना सन 1914 में हुई थी। जिसमें आप सभी छात्र एवं छात्राओं का हार्दिक स्वागत है। वस्तुतः इस महाविद्यालय में आप के सर्वांगीण विकास का ध्यान रखा जाता है किंतु इसमें आपका एवं आपके परिवार का सहयोग सादर अपेक्षित है। क्योंकि बिना आपके सहयोग से हम महाविद्यालय के विकास एवं अनुशासन को बनाए रखने में अक्षम रहेंगे।
आपसे यह निवेदन है कि आप शिक्षा के साथ-साथ अपना चारित्रिक विकास करें क्योंकि केवल डिग्री प्राप्त कर लेने से आप अच्छे नहीं बन सकते हो। इसके लिए आप में नैतिक सुधार लाना होगा यही विद्या आपको सिखाती है । आपको यह जानना होगा कि आप कैसे अपने लिए तथा परिवार एवं समाज के लिए उपयोगी हो सकते हैं। इसके लिए नैतिकता, कर्तव्य, परायणता, सेवा, त्याग, तपस्या, सहिष्णुता, विनम्रता, धैर्य, पवित्रता, साहस एवं पराक्रम जैसे गुणों का जीवन में महत्व देना पड़ेगा तथा इन्हें अपनाना पड़ेगा अर्थात् आपको एक अच्छा इंसान बनना पड़ेगा। इस महाविद्यालयीय जीवन में आपको पाठ्य विषयों के साथ-साथ इन विषयों का भी ज्ञान कराया जाएगा तथा प्रयास किया जाएगा कि आपके व्यक्तित्व का संस्कार, परिष्कार तथा निर्माण हो।
आप सभी से यह आशा की जाती है कि आप महाविद्यालय की गरिमा को बनाए रखने में हमारा सहयोग करेंगे।महाविद्यालय अनुशासन एवं नियमों का यथोचित पालन करते हुए महाविद्यालय के स्वच्छ वातावरण में अपने को सुरभित करने का सुंदरतम् प्रयास करेंगे। महाविद्यालय परिवार आपके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।
शुभेच्क्षा