परिचायिका:

देवाधिदेव महादेव आशुतोष भूतभावन भगवान् श्री गौरीशंकर की पावन स्थली श्री फरीदाबाद धाम फरीदाबाद बालवरगंज जौनपुर का जन कल्याणकारी कार्यों में अद्वितीय स्थान रहा है। जब जब जनमानस पर विपत्ति के बादल मंडराने लगते हैं तब तब आशुतोष भगवान् शंकर की महती कृपा से जनमानस में स्वतः ऐसी क्षमता और पुरुषार्थ जग जाता है जो भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने में सहयोगी सिद्ध होता है। मुगलों के शासन काल में भारतीय परंपराओं व संस्कारों पर अनेक कुठाराघात हुए भारतीय संस्कृति अस्मिता प्रभावित होने लगी। कालांतर में यहां अंग्रेजी शासन हो गया। दूर -दृष्टि रखने वाले गोरे शासक अपनी भाषा अंग्रेजी प्रशासन के माध्यम से जनता पर लाद दिए। जिस देश में वैशम्पायन जैसे पक्षी कभी संस्कृत बोलते थे उस देश में भारतीय संस्कृति की मुख्य भाषा संस्कृत मृतप्राय हो गई। यह स्वाभाविक है कि दरवाजा विहीन महल में स्थित धरोहर एक दिन स्वतः समाप्त हो जाती है। ऐसी विषम परिस्थिति में भगवान् भोलेनाथ की कृपा से परम श्रद्धेय पंडित रामदास त्रिपाठी पुत्र श्री शिव संपत्ति त्रिपाठी पूराकोदई (फरीदाबाद) बालवरगंज जौनपुर ने भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने और समाज में संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए वर्तमान में बस स्टेशन क्षेत्र में अपने कुछ सहयोगियों एवं संभ्रांत नागरिकों के साथ भगवान् शिव जी की धाम में श्री गौरीशंकर संस्कृत विद्यालय की सन् 1914 ई0 में स्थापना की। जनता जनार्दन के सहयोग से विद्यालय संचालन के लिए एक कच्चे दलान का निर्माण कराया गया। विद्यालय के प्रधानाचार्य सुखनंदन उपाध्याय को बनाया गया। विद्यालय चलने लगा विद्यालय का रजिस्ट्रेशन हो गया और मान्यता भी मिल गई। संचालन हेतु विद्यालय का संबंध हरपाली देवी सेवा ट्रस्ट से हुआ धीरे-धीरे ट्रस्ट का प्रभाव विद्यालय के आर्थिक पहलू पर कम प्रशासनिक पहलू पर अधिक बढ़ने लगा।ट्रस्ट की ओर से दबाव बढ़ने लगा कि विद्यालय के नाम से श्री गौरीशंकर निकालकर ‘हरपाली देवी’ जोड़ दिया जाए और विद्यालय का नाम हरपाली देवी संस्कृत विद्यालय सुजानगंज जौनपुर हो जाए ।अन्यथा ट्रस्ट सहयोग देना बंद कर देगा। प्रबंध समिति ने क्षेत्र के संभ्रांत लोगों के समक्ष ट्रस्ट का प्रस्ताव रखा। लोगों ने प्रस्ताव ठुकरा दिया और प्रतिज्ञा किया कि पूरा सहयोग विद्यालय को किया जाएगा। उस गरीबी के दिनों में लोगों ने अपने घरों में एक बर्तन रखा और प्रतिदिन अपनी खाद्य सामग्री में से एक- एक चुटकी आटा निकाल कर बर्तन में रखते थे। सप्ताह में एक दिन छात्र गांव-गांव घूमकर आटा इकट्ठा करते थे। भोजन भरकर का राशन रख दिया जाता था। शेष बेचकर विद्यालय का अन्य कार्य किया जाता था। विद्यालय में पूर्णतः आश्रम व्यवस्था थी। विद्यालय की शिक्षा व अनुशासन के बल पर ही विद्यालय को सन 1946 ई0 में आचार्य कक्षापर्यन्त नव्य व्याकरण तथा साहित्य की मान्यता मिली। इसी विद्यालय के पूर्व छात्र परम मेघावी कुशाग्र बुद्धि वाले आद्यंत प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर्मठ व पुरुषार्थी श्री चन्द्रदेव मणि त्रिपाठी अध्यापक पद पर नियुक्त किए गए। कालक्रम अनुसार प्रधानाचार्य बदलते रहे। क्षेत्र वासियों की भावना का आदर करते हुए बरपुर बालवर गंज जौनपुर निवासी श्री रमापति तिवारी पोस्टाचार्य विद्यालय के प्रधानाचार्य हुए। त्रिपाठी जी समर्पित भाव से विद्यालय का संचालन करने लगे किंतु शिव के उपासक होने के कारण उनका मन सदैव काशीवास की और लगा रहता था। फलतः काशी विद्यापीठ बनारस में अध्यापक हो गए और विद्यालय प्रधानाचार्य पद का कार्यभार सन् 1953 में विद्यालय के अध्यापक श्री चंद्र देव मणि त्रिपाठी को प्रदान कर दिया ।श्री चंद्रदेव मणि जी पूरी निष्ठा और उत्साह से अपने पद का निर्वहन करने लगे। विद्यालय इसी सहयोग से चलता रहा। ट्रस्ट के अर्थविहीन प्रशासन एवं प्रशासनिक दबाव और अन्य संकटों से क्षुब्ध प्रधानाचार्य जी अपने जैसे कर्मठ, उत्साही और समाजसेवी महापुरुष की खोज करने लगे। भोलेनाथ की कृपा से अपनी इमानदारी, कर्मठता, पुरुषार्थ, उत्साह और समाज सेवा के लिए प्रसिद्ध दादा श्री रघुवीर त्रिपाठी के देदीप्यमान अंशभूत पंडित पृथ्वीपाल त्रिपाठी क्षेत्र के गणमान्य लोगों द्वारा उंगलियों पर गिने जाते थे। प्रधानाचार्य जी दौड़ कर उनके गले लिपट गए और विद्यालय सहयोग का आशीर्वाद मांगा। श्री त्रिपाठी जी का आश्वासन मिलते ही मानो सोने में सुगंध आ गई। प्रबन्ध समिति और सभा ने विद्यालय के प्रबंधक पद पर श्री त्रिपाठी जी का वरण किया। समाज सेवा के व्रती श्री त्रिपाठी जी वैशाख जेठ की दुपहरी में अनाज का बोरा लिए प्रधानाचार्य के साथ गांव – गांव में चंदा मांगते थे ।रुपये के अभाव में अनाज इकट्ठा करते थे इसी से छात्रों का भोजन तथा विद्यालय का अन्य खर्च चलने लगा अपने अर्थहीन ट्रस्ट के कुशासन से विद्यालय को मुक्त कराया। अन्त में वर्तमान बस स्टेशन के सन्निकट सुजानगंज जौनपुर राजमार्ग के किनारे पर स्थित महाविद्यालय के छात्रावास के लिए दे दिया गया। महोदय का उत्साह बढ़ा महाविद्यालय की प्रगति के प्रति दीवाने प्रबंधक महोदय अदम उत्साही प्रधानाचार्य को लेकर निकल पड़े। आपने गांव-गांव, घर-घर चंदा मांगा। मुंबई जैसे महानगर की गली-गली में घूम -घूमकर चंदा इकट्ठा किया। विद्यालय के सामने राजमार्ग के दक्षिण 28 डिसमिल जमीन रजिस्ट्री करा कर उस पर एक भव्य भवन का निर्माण कराया। जिसमें कुल 12 कमरे एक विशाल हाल और भवन के चारों तरफ बरामदे साथ ही विद्यालय के छात्रावास की जमीन पर एक विशाल छात्रावास भवन का निर्माण किया गया। इसकी शैक्षिक व्यवस्था एवं अनुशासनात्मक व्यवस्था के कारण ही विद्यालय को 1964 में ख वर्ग ( डिग्री कालेज ) तथा सन् 1966 में क वर्ग ( स्नातकोत्तर महाविद्यालय) श्रेणी की मान्यता शासन द्वारा प्रदान की गई और अध्यापकों के कुल 18 पद स्वीकृत किए गये। महाविद्यालय निर्वाध विधि से चलता रहा। पंडित चंद्र देव मणि त्रिपाठी प्रधानाचार्य तथा श्री कृष्ण त्रिपाठी की सेवानिवृत्ति के बाद 1 जुलाई 2003 को विद्यालय के सहायक अध्यापक डॉ जयप्रकाश तिवारी पुत्र श्री पृथ्वीपाल तिवारी दहेव बालवरगंज की नियुक्ति प्राचार्य पद पर हुई। धन्य हैं भूत भावन भगवान् भोलेनाथ जिनकी माहिती कृपा से महाविद्यालय प्रगति पथ पर 10 कदम आगे दिखाई दे रहा है। प्राचार्य डॉ जयप्रकाश तिवारी के कार्यकाल संभालते ही इनके पुरुषार्थ के बल पर महाविद्यालय की बाउंड्री वाल, एक बड़ा हाल, प्राचार्य कार्यालय, विशाल पुस्तकालय कक्ष, शौचालय एवं स्नानागार बनाया गया। इतने से प्राचार्य जी को संतोष नहीं मिला। क्षेत्र के बेरोजगार छात्रों को आप सहन नहीं कर पाए फलत: महाविद्यालय के पूरब महाविद्यालय के नाम भूमि रजिस्ट्री कराकर शिक्षाशास्त्री (बी एड) संकाय चलाने के लिए दो तल का एक विशाल भवन का निर्माण करवाया। जिसमें 26 गुणे 36 के नौ कक्ष तथा एक विशाल सभागार 25 गुणे 12 का, प्राचार्य कक्ष, 9 शौचालय एवं स्नानगृह का निर्माण करवाया गया। साथ ही साथ शिक्षा शास्त्री की मान्यता ली गई। परिणाम स्वरूप शिक्षाशास्त्री (बी0 एड0) का सत्र आरंभ हो गया है। क्षेत्र के भटकते नौनिहालों को राष्ट्रीय सेवा एवं जीविकोपार्जन के लिए मार्ग प्रशस्त होने लगा । छात्रों की सुविधा के लिए शुद्ध पेयजल की सुविधा हेतु दो पंजाब, इंडिया मार्का नल तथा समरसेबल पंप की व्यवस्था की गई। इतना ही नहीं पुराने महाविद्यालय के भवन की मरम्मत प्राचार्य जी के अदम्य पुरुषार्थ और लगन का सूचक है। आज महाविद्यालय परस्पर विकासोन्मुख ही प्रगति के निर्वाध पथ पर चलता हुआ प्रदेश में अपना अद्वितीय स्थान रखे हुए हैं। वर्तमान में इस महाविद्यालय के यशस्वी प्राचार्य डॉ0 विनय कुमार त्रिपाठी के द्वारा महाविद्यालय का विकास किया जा रहा है। इनके द्वारा विद्यालय में विकास के अनेक कार्य किए जा रहे हैं। आदरणीय प्राचार्य जी का पुरुषार्थ भगवान् शिव की कृपा से इसी क्रम में विद्यालय को रहेगा और क्षेत्र का सहयोग बना रहेगा तो पूर्ण विश्वास है कि महाविद्यालय में अनेक संकाय खुल जाएंगे जिनसे क्षेत्र के शिक्षित बेरोजगारों नौजवानों को इस महाविद्यालय के माध्यम से जीविकोपार्जन एवं राष्ट्र सेवा का रास्ता मिलता रहेगा तथा संस्था चिरकाल तक नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी। श्री गौरीशंकर संस्कृत महाविद्यालय की इस उर्वरा माटी को शत-शत नमन है जिसने अनेक विश्वविख्यात् लोगों को जन्म दिया और इसी प्रकार आगे भी अपने सरस्वती के वरद् पुत्रों को जन्म देती रहेगी।

Vision

” To create an advanced centre of Old and Modern learning of international standard where pursuit of knowledge and excellence shall reign supreme, unfettered by the barriers of nationality, language, cultural plurality and religion. “

Mission

  • Imparting value based quality education of international standard and imbibing skill for solving real life problems.
  • Inculcating global perspective in attitude.
  • Creating leadership qualities with futuristic vision and societal responsibilities.
  • Cultivating adaptation of ethics, morality and healthy practices in professional life.
  • Instilling habit of continual learning.
  • Encouraging and supporting creative abilities and research temperament.
  • Establishing and promoting state-of-the-art technology.